Agrasen

 

जय जय अग्रोहा

Prabha Agrawal   August 21, 2020 2:48 pm

अग्रवालों के इतिहास में ‘ अग्रसेन के बाद अग्रोहा का नाम भी सब नामों से अधिक प्रसिद्ध है ।
अग्रसेन मूल पुरूष का नाम था तो अग्रोहा अग्रवालों के केन्द्र स्थान का नाम था ।महाराजा अग्रसेन के नाम पर हीं यह बसा था । यह स्थान कई सौ बर्षों तक अग्रवाल राजाओं की राजधानी रहा और अब भी इसके स्म‌ति – चिन्ह वाकी हैं ।अगरोहा अपने समय में एक बहुत समृद्धशाली नगर था । राजधानी होने से समस्त राज्य की सारी शक्ति और शोभाउसी में एकत्र हुई थी यह कहने की आवश्यकता नहीं । कहते हैं यहां अग्रवालों के एक लाख घर थे और सभी धनी मानी और धार्मिक थे । उनमें जाति का अभिमान ,धर्म का भाव ,एवं परस्पर सहानुभूति थी ।

उनके द्वार पर आकर कोई भी असंतुष्ट होकर निराश होकर नहीं लौटता था ।एवं अग्रवाल भाईयों के विषय में तो उन्हें ऐसा अभिमान ताकि अगरोहे में किसी दीन दु:खी अग्रवाल भाई का मिलना असम्भव था ।अगरोहे में एक लाख घर थे और वहां ऐसा रिवाज पड़ गया था कि कोई गरीब भाई आ जाय तो उन्हें हर घर प्रति एक एक ईंट और एक एक रूपया देकर समृद्ध कर दिया जाता था ।

अग्रोहा सौभाग्य सम्पदा का निकेतन था । पर काल – चक्र बदला और सबसे पहले संवत् ७५८ में धाराधिपति समरजीत ने अगरोहे पर आक्रमण किया । अगरोहा वासियों ने उनका सामना किया पर अगरोहे का राजा धर्मसेन अपने धर्म और सेना से अलग होकर पहले हीं समरजीत से जा मिला था ।और धर्मसेन के बदौलत हीं

समरजीत अगरोहे को लूटा । शायद इसी समय अगरोहे का राज – वैभव भी
नष्ट हो गया और अग्रवालों के लिए केवल ५२ बावन मुहाल की जागीर हीं शेष रह गयी ।

इसके बाद लगभग पांच सौ वर्षों तक अगरोहे के जीवन में कोई विशेष घटना नहीं हुई , इस बीच भारत वर्ष पर विदेशियों के अनेक आक्रमण हुए पर मालुम होता है कि जिस महमूद गजनवी ने हिन्दुस्तान पर १७ सत्रह बार आक्रमण किया उसकी दृष्टि से अग्रोहा बचा रहा । परन्तु सन् ११६७ में शहाबुद्दीन गोरी ने एक लाख बीस हजार सेना के साथ जब भारत पर उसने चढ़ाई कीउस समय अगरोहे पर भी उसने दावा किया था और दुर्भाग्य कि इस बार अग्रोहा अपना अस्तित्व न बचा सका , बच न सका उसका संपूर्ण विध्वंश हुआ और अगरोहे के अग्रवाल भागकर युक्त – प्रदेश , पंजाब ,झुन्झुनु , कोल ,नारनौल ,मारवाड़ , दिल्ली के भिन्न भिन्न स्थानों में जा बसे और वैश्य – वृति से जीविका
निर्वाह करने लगे ।

अगरोहे की इस तरह तीन अवस्थाएं दिखाई देती है , पहले राजधानी थी फिर ५२ बावन मुहाल की जागीर हुई उसके बाद खण्डहर ।

आज फिर यही खण्डहर अग्रवाल जाति को अपने पूर्ण वैभव का स्मरण कराकर अपने पराक्रम से नये सिरे से अग्रोहा नव निर्माण के लिए प्रेरित कर रहा है ।

आज अग्रोहा फिर आगे बढ़ रहा है , नए नए निर्माण हो रहे हैं ।

आज यही अग्रोहा हम सभी अग्रवाल जाति का पांचवां धाम है ।
* जय जय अग्रोहा*

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